Thursday, December 18, 2008
एक ही प्रश्न
कोई भी न रहा सहारा ।
मनुज फिरे बन कर बेचारा ।
शक्ति नहीं आशक्ति नहीं ,
भक्ति नहीं और मुक्ति नहीं ।
कुंठा प्रकटित प्रति मस्तक पर,
चिंता बढ़ती हर दस्तक पर ॥
एक ही प्रश्न निरंतर है ।
क्या मेरा है क्या है तुम्हारा ?
....शेष आगामी संग्रह मे ....
Friday, December 5, 2008
एहसास टकराते रहे
रात भर एहसास से एहसास टकराते रहे।
आए सनम आगोश मे शिकवे-गिले जाते रहे॥
दूरियां अब दूरियों से पूछती हैं दूरियां।
होंठ न कह पाए कुछ सांसों से थर्राते रहे॥
हाथ आए हाथ मे सब मन्नतें पूरी हुईं।
मेरे उनके दरमियाँ लम्हे भी मुसकाते रहे॥
करवटें-दर-करवटें थकता नहीं हममे कोई।
जिंदगी के पैराहन पर रंग बरसते रहे॥
''इश्क'' है इतनी ही ख्वाहिश आशनाई मे।
ख्वाब कुछ इस तरह के ही रात मे आते रहें॥
Monday, November 24, 2008
कारनामे सभी बेकार हुए जाते हैं
बेबसी मे बड़े बेजार हुए जाते हैं।
कारनामे सभी बेकार हुए जाते हैं॥
सूखते जा रहे मेहनतकशों के बदन यहाँ।
सूदखोरों के तन गुलजार हुए जाते हैं॥
मुल्क मे फ़ैली है तालीम फायदे वाली।
फ़िर जेहन अपने क्यों बीमार हुए जाते हैं॥
रोज होती हैं यां तकरीरें भाई -चारे की।
इल्म वाले ही क्यों दीवार हुए जाते हैं॥
जब नशा हुश्न की आंखों मे नही मिलता।
''इश्क'' वाले तभी मयख्वार हुए जाते हैं॥
Sunday, November 16, 2008
दर्द उठता है
दिल पिघलता है चाह उठती है ॥
जब मोहब्बत का असर होता है।
जहाँ से रस्मो-राह उठती है ॥
देर तक जागे जो सुबह उनकी
रफ्ता-रफ्ता निगाह उठती है ॥
यहाँ बदनाम खुदा होता है ।
गरीबी जब कराह उठती है ॥
''इश्क'' का दर्द जिस गजल मे हो।
उसपे महफ़िल से वाह उठती है ॥
Friday, August 8, 2008
गम का एहसास
Friday, July 18, 2008
जाने कैसा है सफर
Monday, July 7, 2008
राहे-करम
Saturday, July 5, 2008
बेबाकियां
Wednesday, July 2, 2008
निगाहों का असर
आपकी शोख निगाहों का असर देख लिया।
कैसे करतें हैं घायल ये जिगर देख लिया॥
देखने को नही बाकी है तमाशा कोई।
आपका चैन चुराने का हुनर देख लिया॥
हम तो एखलाक-ओ-इमान लिए फिरते थे।
दौलतों के लिए दीवाना शहर देख लिया॥
अब कहीं और जा के अपने कसीदे पढिये।
मेरी बस्ती ने सियासत का कहर देख लिया॥
Thursday, June 26, 2008
रिश्तों की चौखट पर।
माथे पर बल आ जाता है ,
थोड़ी सी आहट पर।।
कितने धागे कितनी लड़ियाँ,
कितने रंग के दाने हैं।
गिनता है बिसराता है,
प्यार भरी मुस्काहट पर।।
तपते दिन और शीतल रातें,
मशरूफी हर मौसम में।
रोज यहाँ पछताता है,
बिस्तर की सिलवट पर।।
'इश्क' ये इन्सां का अफसाना,
रिश्ते बुनते जाना है।
नए सहारे खोज रहा है,
हर दिल की अकुलाहट पर।।
Wednesday, June 18, 2008
अपना बन गया कोई
मिलके रूहे-वतन गया कोई।
खुशबू ऐसी जो तर-ब-तर कर दे,
छू के दिल का चमन गया कोई।
दर्द -दर-दर्द था कितना परेशान मैं,
ले के शक्ले -शिकन गया कोई।
'इश्क' अब बेअसर हुआ गम भी,
करके हमको मगन गया कोई॥
Sunday, June 15, 2008
Saturday, June 14, 2008
कुछ कहना है
Friday, June 13, 2008
Wednesday, June 11, 2008
Saturday, June 7, 2008
दर्द का मजा
रात देर तक जाग के देखा,
कोई सितारा बुझा नहीं था।
मैं ही अकेला था महफ़िल में,
फ़िर भी मुझ पर फ़िदा नहीं था।
चाँद भी मुझ सा फिक्रमंद था,
मेरे गम से जुदा नहीं था।
कैसे मजा तुम दर्द का पाते ,
इश्क किसी से हुआ नहीं था.
Friday, June 6, 2008
safalta
Thursday, June 5, 2008
यह काल कहाँ ले जाएगा , है यक्छा प्रश्न नव पीढी का .
रोहन को आधार मिला , टूटे बांसों की सीढी का ॥
योवन की उर्वरा लगा , अवसाद की फसलें काट रहे .
तन के तरुवर को मृदा बना , अनंत कूप को पाट रहे ॥
असफलता से लड़ते-लड़ते, रेखाएं बनी ललाटों पर ।
मन्दिर-मस्जिद भी ऊब चुके , हैं ताले पड़े कपाटों पर ॥
सुधा कलश भी सूख गया , बस गरल घुला है तंत्रों में ।
विष को अमृत करने वाली , अब शक्ति नहीं है मंत्रों में ॥
क्छुधा ने टाप को विजित किया ,महालाक्छ्या निज स्वार्थ्य हुआ।
दर्शन के अंतश से निकला वो महाज्ञान भी व्यर्थ हुआ ॥
है पास हमारे जो कुछ भी , यदि उसमें संतोष नहीं ।
साधन कम हैं याचक ज्यादा , प्रकृति का इसमें दोष नहीं ॥
संसार बिचारा क्या देगा , जो स्वयं खड़ा झोली फैलाये ।
इससे लेने से अच्छा है , हम इसको कुछ देकर जायें ॥
के ० के ० मिश्रा
''इश्क '' सुल्तानपुरी ।
Thursday, May 22, 2008
हैं हवाएं इस तरह मेरा दिया जलता नहीं ।
चल रहे थे वो बराबर खो गए हैं एकबयक ,
किस गली में मुड़ गए हैं वो पता मिलता नहीं ।
क्या सुनाएँ दास्ताँ क्या अपना अफसाना कहें ,
मुंह की सुनते हैं यहाँ दिल का कोई सुनता नहीं ।
'इश्क' है ये ही रवायत खैर- ख्वाहों के लिए ,
जब बुरा हो दोर तो दर कभी खुलता नहीं ।
इश्क सुल्तानपुरी