Friday, June 13, 2008


चल रहा है,


दोनों कन्धों पर झोलियाँ ;


लटकाए हुए।




पीछे पदचिन्हों को नापती स्त्री,


गर्दन झुकाए गोद मे बालक;


चिपकाए हुए।



यूं लगा जैसे जीवन का ,


दर्श और आदर्श इस दृश्य में;


समाये हुए.

1 comment:

mehek said...

gehre bhav bahut khub