Friday, July 18, 2008

जाने कैसा है सफर



न हमनवां न हमसफ़र।

ऊंची नींची है डगर॥

आज तक जाना नहीं।

जाने कैसा है सफर॥




खो गया मिलता नहीं।

बुझ गया जलता नहीं॥

ढूँढता हूँ दर-ब-दर ।

जाने कैसा है सफर॥




जाऊँगा मैं किस तरफ़ ।

अब अंधेरे हैं सिर्फ॥

कुछ नहीं आता नजर।

जाने कैसा है सफर॥




''इश्क'' के हर दर्द से।

दूर हैं हमदर्द से।।

याद आता है मगर।

जाने कैसा है सफर॥



Monday, July 7, 2008

राहे-करम


वो जो राहे-करम मे रह गयीं मेरे पावों की निशानियाँ।
जो रहीम हैं उन्हें जोश दे जालिम को दे परेशानिया॥


कल वो ही नूरे-जहान था जो भी रहनुमा-ऐ-इमान था।
अब जुल्म-सर-मजलूम है हाकिम की बेईमानियाँ॥


हर दिल अजीज थे रहमदिल वो बुजुर्ग याँ से चले गए।
बिसर गयी जो सुकून थी वो दादी माँ की कहानियाँ॥


हर एक मद को है बेंचती मेरे मुल्क की ये सियासतें।
यहाँ पहरेदार हैं लूटते हुईं खाक लुट के जवानियाँ॥


है ''इश्क'' की यही इल्तजा उस पाक परवर-दिगार से।
इस ओर भी कर दे निगाह टी लौटा दे याँ की रवानियाँ॥

Saturday, July 5, 2008

बेबाकियां



आशिकी संगदिली नहीं होती।

बेबाकियाँ भली नहीं होती॥



अगर इनकार का पता होता।

जुबाँ मेरी खुली नहीं होती॥



इंतजार-ऐ-शमा जली नहीं होती।

हवा ऐसी चली नहीं होती॥



टूटता जो एतबार कोई।

बस्तियां फ़िर जली नहीं होती॥



''इश्क'' का नाम मिट गया होता।

गर्दिशें गर मिली नहीं होती॥

Wednesday, July 2, 2008

निगाहों का असर


आपकी शोख निगाहों का असर देख लिया।

कैसे करतें हैं घायल ये जिगर देख लिया॥



देखने को नही बाकी है तमाशा कोई।
आपका चैन चुराने का हुनर देख लिया॥



हम तो एखलाक-ओ-इमान लिए फिरते थे।

दौलतों के लिए दीवाना शहर देख लिया॥



अब कहीं और जा के अपने कसीदे पढिये।

मेरी बस्ती ने सियासत का कहर देख लिया॥



'इश्क कैसे बचाएं अपना बसेरा इनसे।
नफरतों ने कहाँ से मेरा भी घर देख लिया॥