Monday, October 3, 2011

तकदीर-ए-बेवफा




तकदीर-ए-बेवफा तुझे कब से बदल रहा हूँ मैं।
मुख्तलिफ हैं हवाएं फिर भी सम्हल रहा हूँ मैं॥



शीशे का बदन ढांके पत्थर के लिबासों में।
हर सिम्त ठोकरों से बचकर निकल रहा हूँ मैं॥



बेबस हूँ बेक़रार हूँ बेजार हो चुका हूँ मैं।

इक बार आ जा जिंदगी तन्हा मचल रहा हूँ मैं॥



बेघर हूँ इस तपिश में हमसाया नहीं कोई।

तेरे दर्द से पिघल कर अश्कों में ढल रहा हूँ मैं॥



हैं सिलसिले ग़मों के कुछ खुशनुमा नहीं है।

गुलशन है तेरा फिर भी काँटों में पल रहा हूँ मैं॥



ए "इश्क" तेरा मंजिल-ओ-अंजाम मुक़र्रर है।

एक रोशनी की खातिर सदियों से जल रहा हूँ मैं॥


........."इश्क" सुल्तानपुरी।

आशनाई की मंजिल



जिंदगी में खुमार आ जाये।

तुमपे दिल बेक़रार आ जाये॥



कब से बेचैन हैं तुम्हारे लिए।

आ भी जाओ करार आ जाये॥



आशनाई की ये ही मंजिल है।

जब कशिश बेशुमार आ जाये॥



ये गुजारिश है मेरी गुलशन से।

तुमको छू लूं निखार आ जाये॥



तुम खुदा की एक नेमत हो।

इक नजर देखें प्यार आ जाये॥



"इश्क" ये मेरी तमन्ना ही सही।

ख्वाब आये बहार आ जाये॥


........................"इश्क"सुल्तानपुरी।









Sunday, October 2, 2011

इकतरफा मुहब्बत






दर-दर की ठोकरें हैं बेबस है जिंदगानी ।


इकतरफा मुहब्बत है गम की है मेहरबानी ।।




दिल आशना हो जिस पर वो दूर जा बसेगा ।


किस शै से दिल लगाऊं किसको कहूं निशानी ।।







मेरे नक्श-ए-पा पे चलकर हमराह गम हुए हैं।


बचपन था खौफ मे अब हैरान है जवानी॥





वो हर कदम पे अपने तारीखें लिख रहे हैं।


हम कर गए बहुत कुछ कहते हैं मुंहजबानी॥






अब "इश्क " क्या तुम्हें भी गम रास गए हैं।


हर बार फ़ना होकर बन जाते हो कहानी॥



'इश्क' सुल्तानपुरी