Saturday, January 31, 2009

जिसको भी आजमाया


एतबार ने किसी के मझधार मे डुबाया।
किसको कहूं मैं अपना यहाँ कौन है पराया।।


दरिया थमा हुआ था माकूल थी हवा भी।
किसपे लगाऊँ तोहमत मांझी ने सितम ढाया।।


बनते हैं मरासिम भी बादल की शक्ल जैसे।
ये चहरे बदलते हैं तूफाँ-ए-गम जो आया॥


इक दौर था जो महफ़िल हमसे ही जगामग थी।
इक दौर आज है जब ख़ुद आशियाँ जलाया॥


रोता हूँ तड़पता हूँ जिसकी वफ़ा की खातिर।
उसने सुना है मेरा हर एक निशाँ मिटाया॥


मौका परस्त दुनिया लोगों की साजिशों ने ।
तालीम को बिगाडा ईमाँ को डगमगाया॥


अब ' इश्क ' क्या करुँ मैं किसको खुदा बनाऊँ।
वही धोखेबाज निकला जिसको भी आजमाया॥


Friday, January 30, 2009

गम-ए -आशिकी




फिर टूटा दिल किसी का कोई हो गया दिवाना ।

लो याद आ गया फिर गुजरा हुआ जमाना ॥



कई कत्ल हो चुके हैं गम-ए -आशिकी के पीछे।

देखो सितम सनम का मुसका के चले जाना॥



मुझे बारहा पुकारा रोंका था अजीजों ने ।

हुश्न-ए -जवां की जुम्बिश तेरी और खिंचे आना ।।




दिल पर बरस रहे है तेरी बेरुखी के पत्थर ।

टुकडों मे हो गया है शीशे का आशियाना ॥



यहाँ "इश्क" की गली मे कई नफरतों के घर हैं।

दस बार परखियेगा जब लेना हो ठिकाना ॥

Sunday, January 11, 2009

हकीकत


क्यूँ करे एतबार कोई क्यूँ ये दीवाना बने।
जब मुसीबत दर पे आये अपना बेगाना बने॥


कर लिया हर शौक हमने कर ली हद तक दिल्लगी।
अब नहीं ख्वाहिश है फिर से कोई अफसाना बने॥


खूब कर ले तू गुमां और खूब कर अय्याशियाँ।
दिन तेरा आने को है जब मिटटी का दाना बने॥


बस एक है खुद की कमाई नेकियाँ इन्सान की।
बाकी हैं वो दौलतें जिनके लिए अपना-बेगाना बने॥


है हकीकत एक ही जाना जिसे सबने जुदा।
मस्जिदों का दर हो चाहे द्वार बुतखाना बने॥


दोस्तों ये है रवायत प्यार के इस खेल की ।
हुश्न बन जाये शमां और ''इश्क'' परवाना बने॥