Saturday, June 14, 2008

कुछ कहना है


हृदयगत हैं भाव बहुत से,
विह्वल जो कर जाते हैं।
कुछ शब्दों के आलंबन में,
डूबते हैं उतराते हैं।

झंकृत करती ध्वनियाँ प्रिय की,
संवाद मनस छू जाते हैं।
उद्बोधन के पूर्व मेरे स्वर,
जिह्वा में छिप जाते हैं।

कुछ कहना है इस विचार में,
हम बाकी रह जाते हैं।
कैसे होंगे जो इस जग में,
अंतस की कह जाते हैं।





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