Thursday, June 26, 2008
रिश्तों की चौखट पर।
माथे पर बल आ जाता है ,
थोड़ी सी आहट पर।।
कितने धागे कितनी लड़ियाँ,
कितने रंग के दाने हैं।
गिनता है बिसराता है,
प्यार भरी मुस्काहट पर।।
तपते दिन और शीतल रातें,
मशरूफी हर मौसम में।
रोज यहाँ पछताता है,
बिस्तर की सिलवट पर।।
'इश्क' ये इन्सां का अफसाना,
रिश्ते बुनते जाना है।
नए सहारे खोज रहा है,
हर दिल की अकुलाहट पर।।
Wednesday, June 18, 2008
अपना बन गया कोई
मिलके रूहे-वतन गया कोई।
खुशबू ऐसी जो तर-ब-तर कर दे,
छू के दिल का चमन गया कोई।
दर्द -दर-दर्द था कितना परेशान मैं,
ले के शक्ले -शिकन गया कोई।
'इश्क' अब बेअसर हुआ गम भी,
करके हमको मगन गया कोई॥
Sunday, June 15, 2008
Saturday, June 14, 2008
कुछ कहना है
Friday, June 13, 2008
Wednesday, June 11, 2008
Saturday, June 7, 2008
दर्द का मजा
रात देर तक जाग के देखा,
कोई सितारा बुझा नहीं था।
मैं ही अकेला था महफ़िल में,
फ़िर भी मुझ पर फ़िदा नहीं था।
चाँद भी मुझ सा फिक्रमंद था,
मेरे गम से जुदा नहीं था।
कैसे मजा तुम दर्द का पाते ,
इश्क किसी से हुआ नहीं था.
Friday, June 6, 2008
safalta
Thursday, June 5, 2008
यह काल कहाँ ले जाएगा , है यक्छा प्रश्न नव पीढी का .
रोहन को आधार मिला , टूटे बांसों की सीढी का ॥
योवन की उर्वरा लगा , अवसाद की फसलें काट रहे .
तन के तरुवर को मृदा बना , अनंत कूप को पाट रहे ॥
असफलता से लड़ते-लड़ते, रेखाएं बनी ललाटों पर ।
मन्दिर-मस्जिद भी ऊब चुके , हैं ताले पड़े कपाटों पर ॥
सुधा कलश भी सूख गया , बस गरल घुला है तंत्रों में ।
विष को अमृत करने वाली , अब शक्ति नहीं है मंत्रों में ॥
क्छुधा ने टाप को विजित किया ,महालाक्छ्या निज स्वार्थ्य हुआ।
दर्शन के अंतश से निकला वो महाज्ञान भी व्यर्थ हुआ ॥
है पास हमारे जो कुछ भी , यदि उसमें संतोष नहीं ।
साधन कम हैं याचक ज्यादा , प्रकृति का इसमें दोष नहीं ॥
संसार बिचारा क्या देगा , जो स्वयं खड़ा झोली फैलाये ।
इससे लेने से अच्छा है , हम इसको कुछ देकर जायें ॥
के ० के ० मिश्रा
''इश्क '' सुल्तानपुरी ।