Monday, November 24, 2008
कारनामे सभी बेकार हुए जाते हैं
बेबसी मे बड़े बेजार हुए जाते हैं।
कारनामे सभी बेकार हुए जाते हैं॥
सूखते जा रहे मेहनतकशों के बदन यहाँ।
सूदखोरों के तन गुलजार हुए जाते हैं॥
मुल्क मे फ़ैली है तालीम फायदे वाली।
फ़िर जेहन अपने क्यों बीमार हुए जाते हैं॥
रोज होती हैं यां तकरीरें भाई -चारे की।
इल्म वाले ही क्यों दीवार हुए जाते हैं॥
जब नशा हुश्न की आंखों मे नही मिलता।
''इश्क'' वाले तभी मयख्वार हुए जाते हैं॥
Sunday, November 16, 2008
दर्द उठता है
दर्द उठता है आह उठती है ।
दिल पिघलता है चाह उठती है ॥
जब मोहब्बत का असर होता है।
जहाँ से रस्मो-राह उठती है ॥
देर तक जागे जो सुबह उनकी
रफ्ता-रफ्ता निगाह उठती है ॥
यहाँ बदनाम खुदा होता है ।
गरीबी जब कराह उठती है ॥
''इश्क'' का दर्द जिस गजल मे हो।
उसपे महफ़िल से वाह उठती है ॥
दिल पिघलता है चाह उठती है ॥
जब मोहब्बत का असर होता है।
जहाँ से रस्मो-राह उठती है ॥
देर तक जागे जो सुबह उनकी
रफ्ता-रफ्ता निगाह उठती है ॥
यहाँ बदनाम खुदा होता है ।
गरीबी जब कराह उठती है ॥
''इश्क'' का दर्द जिस गजल मे हो।
उसपे महफ़िल से वाह उठती है ॥
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