
बेबसी मे बड़े बेजार हुए जाते हैं।
कारनामे सभी बेकार हुए जाते हैं॥
सूखते जा रहे मेहनतकशों के बदन यहाँ।
सूदखोरों के तन गुलजार हुए जाते हैं॥
मुल्क मे फ़ैली है तालीम फायदे वाली।
फ़िर जेहन अपने क्यों बीमार हुए जाते हैं॥
रोज होती हैं यां तकरीरें भाई -चारे की।
इल्म वाले ही क्यों दीवार हुए जाते हैं॥
जब नशा हुश्न की आंखों मे नही मिलता।
''इश्क'' वाले तभी मयख्वार हुए जाते हैं॥
3 comments:
बेहतरीन गज़ल सुल्तानपुरी जी...
रोज होती हैं यां तकरीरें भाई -चारे की
इल्म वाले ही क्यों दीवार हुए जाते हैं
...क्या बात है
बहुत सही बात कह डाली!
Bahut khub.
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