Friday, December 5, 2008

एहसास टकराते रहे


रात भर एहसास से एहसास टकराते रहे।
आए सनम आगोश मे शिकवे-गिले जाते रहे॥

दूरियां अब दूरियों से पूछती हैं दूरियां।
होंठ न कह पाए कुछ सांसों से थर्राते रहे॥

हाथ आए हाथ मे सब मन्नतें पूरी हुईं।
मेरे उनके दरमियाँ लम्हे भी मुसकाते रहे॥

करवटें-दर-करवटें थकता नहीं हममे कोई।
जिंदगी के पैराहन पर रंग बरसते रहे॥

''इश्क'' है इतनी ही ख्वाहिश आशनाई मे।
ख्वाब कुछ इस तरह के ही रात मे आते रहें॥

4 comments:

Asha Joglekar said...

विरह के बाद के मिलन का बहुत खूबसूरत अहसास । अगर ये ख्वाब है तो पूरा जरूर होगा .

हरकीरत ' हीर' said...

Accha likhte hain Ishq ji...

Vinay said...

बहुत अच्छे!

Alpana Verma said...

हाथ आए हाथ मे सब मन्नतें पूरी हुईं।
मेरे उनके दरमियाँ लम्हे भी मुसकाते रहे॥

ek baar phir ..kyaa khubsurat likhtey hain aap!