Thursday, December 18, 2008

एक ही प्रश्न




कोई भी रहा सहारा

मनुज फिरे बन कर बेचारा



शक्ति नहीं आशक्ति नहीं ,

भक्ति नहीं और मुक्ति नहीं

कुंठा प्रकटित प्रति मस्तक पर,

चिंता बढ़ती हर दस्तक पर




एक ही प्रश्न निरंतर है

क्या मेरा है क्या है तुम्हारा ?



....शेष
आगामी संग्रह मे ....

Friday, December 5, 2008

एहसास टकराते रहे


रात भर एहसास से एहसास टकराते रहे।
आए सनम आगोश मे शिकवे-गिले जाते रहे॥

दूरियां अब दूरियों से पूछती हैं दूरियां।
होंठ न कह पाए कुछ सांसों से थर्राते रहे॥

हाथ आए हाथ मे सब मन्नतें पूरी हुईं।
मेरे उनके दरमियाँ लम्हे भी मुसकाते रहे॥

करवटें-दर-करवटें थकता नहीं हममे कोई।
जिंदगी के पैराहन पर रंग बरसते रहे॥

''इश्क'' है इतनी ही ख्वाहिश आशनाई मे।
ख्वाब कुछ इस तरह के ही रात मे आते रहें॥