Sunday, November 16, 2008

दर्द उठता है





दर्द उठता है आह उठती है
दिल पिघलता है चाह उठती है


जब मोहब्बत का असर होता है
जहाँ से रस्मो-राह उठती है


देर तक जागे जो सुबह उनकी
रफ्ता-रफ्ता निगाह उठती है


यहाँ बदनाम खुदा होता है
गरीबी
जब कराह उठती है


''
इश्क'' का दर्द जिस गजल मे हो।
उसपे महफ़िल से वाह उठती है

4 comments:

mehek said...

waah bahut badhiya khas kar aakhari do sher lajawab

Dr.Bhawna Kunwar said...

''इश्क'' का दर्द जिस गजल मे हो।
उसपे महफ़िल से वाह उठती है ॥

bahut khubsurat sher ha ...likhte rahiye...

Vinay said...

जब मोहब्बत का असर होता है।
जहाँ से रस्मो-राह उठती है ॥

बहुत ख़ूब!

Kumar Mukul said...

अरे भाई कहां थे अरसे से , बहुत अच्‍छी लगी आपकी यह गजल