Wednesday, July 2, 2008

निगाहों का असर


आपकी शोख निगाहों का असर देख लिया।

कैसे करतें हैं घायल ये जिगर देख लिया॥



देखने को नही बाकी है तमाशा कोई।
आपका चैन चुराने का हुनर देख लिया॥



हम तो एखलाक-ओ-इमान लिए फिरते थे।

दौलतों के लिए दीवाना शहर देख लिया॥



अब कहीं और जा के अपने कसीदे पढिये।

मेरी बस्ती ने सियासत का कहर देख लिया॥



'इश्क कैसे बचाएं अपना बसेरा इनसे।
नफरतों ने कहाँ से मेरा भी घर देख लिया॥




5 comments:

Anonymous said...

bhut khub. likhate rhe.

Kumar Mukul said...

आपका ब्‍लाग देखा पहली गजल अच्‍छी लगी अन्‍य कविताओं में भ्ी आपकी सादगी दिखी

ishq sultanpuri said...

aapko shukriya

Asha Joglekar said...

बहुत खूबसूरत लिखते हैं । जारी रहिये ।

mehek said...

behtarin