Saturday, April 18, 2009
हकीकत और ख्वाबों मे
ये दुनिया वो नही दिखती है जो तामीर होती है।
हकीकत और ख्वाबों मे अलग तस्वीर होती है॥
किसी की बेवफाई का गिला करके भी क्या हासिल।
हँसी सूरत मे जो शीरत है वो बेपीर होती है॥
फरेबी की है ये ख्वाहिश कि मैं उस जैसा हो जाऊं।
नहीं बन पाया मैं ये खून की तासीर होती है॥
सियासतदां के अल्फाजों से तख्त-ओ-ताज मिलते हैं।
मगर शायर कि खुद्दारी भी इक जागीर होती है॥
ये जज्बातों का नक्शा ''इश्क'' कि कारीगरी देखो।
जहाँ दिल सीने मे हो पाँव मे जंजीर होती है॥
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment