Thursday, April 9, 2009

वक्त का दरिया




वक्त के दरिया मे हलचल हो रही है।
गम की जानिब से हवाएं चल रही हैं॥


जिंदगी को बुनता हूँ हर रोज मैं।
टूट जाती है लडी जो कल रही है॥


सुबहा से उम्मीद मिलती शाम से हैरानियाँ।
जिंदगी इस कश-म-कश में ढल रही है॥


कर दिया इजहार-ऐ-दिल बेफिक्र हो।
जाने कब से ये मुहब्बत पल रही है॥


''इश्क'' की है आरजू हर शै बुझाऊँ।
जो दिलों मे नफरतों सी जल रही है॥





2 comments:

Vinay said...

ग़ज़लों से मालूम नहीं होता कि यह सब इंस्पेक्टर के दिल जज़्बात हैं! बड़े नेकदिल मालूम होते हैं!

ishq sultanpuri said...

vinay bhaee dino din aapaki nazme parvan chadh rahee ye mere liye garv ki baat hai ki aapka sanidhya mila hai............badhaee ho........

....lok sabha ke chunav ki vajah se jyada vyast hoon.........