Tuesday, February 17, 2009

जिन्दा हूँ मैं





शाम फिर आयी
सवाल आया गुबार आया।
बेकरारी फिर तड़प उठी
कि रोना बेशुमार आया॥


रह गया बस कल का हासिल
आज भी
कर गया तनहा मुझे
हमराज भी॥


प्यास है बस सब्र भर
है दर्द का दरिया यहाँ।
वक्त का चुल्लू है खाली
लब नहीं खुलते यहाँ॥


कह दिया शाकी ने
कल आऊंगा मैं।
राह ताकना अब
तरसाऊंगा मैं॥


बस तेरी इक आस मे
जिन्दा हूँ मैं।
वरना तुझसे जिंदगी
शर्मिंदा हूँ मैं॥


"इश्क" करके रात भर का जागना
मलाल आया खुमार आया।
बेकरारी फिर तड़प उठी
की रोना बेशुमार आया॥


"इश्क' सुल्तानपुरी

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