Tuesday, February 10, 2009
डूबता जाता हूँ मैं
जब से की है आशिकी वादों से टकराता हूँ मैं।
राह चलता हूँ कहीं की और कहीं जाता हूँ मैं।।
है जेहन में साफगोई दिल है पाकीजा मेरा।
पर अजीजों की निगाहों से गिरा जाता हूँ मैं॥
आजमाईश है दिलों की या जरूरत है कोई।
तेरी हर उलझन मिटाने मे मिटा जाता हूँ मैं॥
जानता हूँ गम ही मिलते हैं मुहब्बत वालों को।
थाह लेने हद की हद तक डूबता जाता हूँ मैं॥
"इश्क" हूँ नफ़रत मुझे है इस तरह शब्-स्याह से।
रोशनी के वास्ते खुद को जला जाता हूँ मैं॥
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3 comments:
बहुत उम्दा सुल्तानपुरी साहब
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चाँद, बादल और शाम
kya baat hai aja dhundh hi liya blog
bahuta cha banaya hai apne...
likha hua to hamesha acha ho hota hai.
aur ek baat me bhi jagjit ji aur meena ji ki fan hun.....
sakhi
आजमाईश है दिलों की या जरूरत है कोई।
तेरी हर उलझन मिटाने मे मिटा जाता हूँ मैं॥
वाह!
क्या खूब लिखा है!
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