
वक्त जब हमपे बुरा आता है।
अपना साया भी मुंह छुपाता है॥
बादलों से गिला करें कैसे।
गम तो आँखों से बरस जाता है॥
रास्तों का कुसूर क्या होगा।
चलते चलते ही उन्मान बदल जाता है॥
ऐसी क्या हो गयी खता उससे।
आईना देख के शरमाता है॥
रेत का हो गया मरासिम भी।
पल मे बनता है बिगड़ जाता है॥
लाखों दुश्मन करीब होते हैं।
सच कोई जब जुबाँ पे लाता है॥
'इश्क' क्या आरजू रकीबों की।
दोस्तों से जो सितम पाता है॥

शाम फिर आयी
सवाल आया गुबार आया।
बेकरारी फिर तड़प उठी
कि रोना बेशुमार आया॥
रह गया बस कल का हासिल
आज भी ।
कर गया तनहा मुझे
हमराज भी॥
प्यास है बस सब्र भर
है दर्द का दरिया यहाँ।
वक्त का चुल्लू है खाली
लब नहीं खुलते यहाँ॥
कह दिया शाकी ने
कल आऊंगा मैं।
राह ताकना अब न
तरसाऊंगा मैं॥
बस तेरी इक आस मे
जिन्दा हूँ मैं।
वरना तुझसे जिंदगी
शर्मिंदा हूँ मैं॥
"इश्क" करके रात भर का जागना
मलाल आया खुमार आया।
बेकरारी फिर तड़प उठी
की रोना बेशुमार आया॥
"इश्क' सुल्तानपुरी
जब से की है आशिकी वादों से टकराता हूँ मैं।
राह चलता हूँ कहीं की और कहीं जाता हूँ मैं।।
है जेहन में साफगोई दिल है पाकीजा मेरा।
पर अजीजों की निगाहों से गिरा जाता हूँ मैं॥
आजमाईश है दिलों की या जरूरत है कोई।
तेरी हर उलझन मिटाने मे मिटा जाता हूँ मैं॥
जानता हूँ गम ही मिलते हैं मुहब्बत वालों को।
थाह लेने हद की हद तक डूबता जाता हूँ मैं॥
"इश्क" हूँ नफ़रत मुझे है इस तरह शब्-स्याह से।
रोशनी के वास्ते खुद को जला जाता हूँ मैं॥