Sunday, March 2, 2014

जरा सा सोंचिये


                     














बलन्दी  पर पहुँच जाये तो फिर सूरज भी ढलता है ,
बदल जाता है सब कुछ वक्त  जब करवट बदलता है।


न इतरा ज़िन्दगी भर ज़िन्दगी की मौज में खोकर ,
जरा सा देख पीछे मौत का साया भी चलता है।


ये एक एहसास जिसको मैं  बयाँ कर ही नहीं सकता ,
तसव्वुर में किसी को पा  के अपना दिल मचलता है।


बहोत बेबाक होकर कुछ भी कह देना नहीं अच्छा ,
जरा सा सोंचिये हर बात का मतलब निकलता है।


सियासतदाँ की बातों  से बहक जाती है जब दुनियाँ ,
किसी की जान जाती है किसी का घर भी जलता है।


महज बकवास है हर आदमी का हक़ बराबर है ,
किसी की भर गयी झोली कोई  हाथों को मलता है।


पसर जाता है सन्नाटा सदाओं के सिमटते ही ,
हमारे शहर का माहौल जब करवट बदलता है।


बदल देता है सूरत ख़ाक  का रौंदा गया हिस्सा ,
वही  जब चाक पर चढ़कर किसी साँचे में ढलता है।


खिलौनों से परी से जाम  से मैख़ाना  साक़ी से ,
बहल  जाता है तब जाकर हमारा दिल सम्हलता  है।


सदाएँ  " इश्क़ " की  सुनकर मुसलसल रो रहा है वो ,
हक़ीकत  है कि चाहत हो तो पत्थर भी पिघलता है।


................... … के ० के ० मिश्र ............................... 
                       "इश्क़ " सुल्तानपुरी 
                          09415308956