अच्छा है
इनसान कोई खुद से बुरा है न भला है।
अच्छे हो तो अच्छा है बुरे हो तो बुरा है।।
इतना ही न देखो कोई सोने का घड़ा है।
पड़ताल करो ये भी कि क्या उसमे भरा है।।
तू चाहे तो रहने दूँ तू कह दे तो मिटा दूँ।
दिल के मेरे कागज़ पे तेरा नाम लिखा है।।
कोयल ने ये संगीत किस उस्ताद से सीखा।
बस इतना समझ लीजिये मालिक की कृपा है।।
बोएगा कोई और तो काटेगा कोई और।
इतिहास किताबों में तो ऐसा ही लिखा है।।
नक्सल हों कि डाकू हों कोई गैर नहीं हैं।
ज़ुल्म और गरीबी ने इन्हें जन्म दिया है।।
दुनिया के खुदाओं का कोई दीन न ईमान।
तू मान वही "इश्क़ " ने जो तुझसे कहा है।।
3 comments:
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ... आशा है नया वर्ष न्याय वर्ष नव युग के रूप में जाना जायेगा।
ब्लॉग: गुलाबी कोंपलें - जाते रहना...
नव संवत्सर की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ!!
बेहद बढिया गज़ल ।
नक्सल हों कि डाकू हों कोई गैर नहीं हैं।
ज़ुल्म और गरीबी ने इन्हें जन्म दिया है।।
सच्ची बात ।
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