Saturday, May 14, 2011

हम भी अब दिल को समझाने लगे हैं







हम भी अब दिल को समझाने लगे हैं।

खास अपने जब से बेगाने लगे हैं॥



टूट जाते हैं हमेशा ये खयाली एतबार।

जब दिलों पर जख्म अनजाने लगे हैं।।



लूटते हैं मुल्क को अब रहनुमा।

सिक्कों से ईमान तुलवाने लगे हैं॥



मुफलिसी के आंसुओं की सींच से।

हम सियासी फसल उपजाने लगे हैं॥


झीना - झीना है जम्हूरी पैराहन।

बस जरा करवट से फट जाने लगे हैं॥



''इश्क'' कैसे ठीक हों हालात ये।

फैसले कातिल से लिखवाने लगे हैं॥



......................."इश्क" सुल्तानपुरी...........

6 comments:

Asha Joglekar said...

झीना - झीना है जम्हूरी पैराहन।

बस जरा करवट से फट जाने लगे हैं॥

क्या बात कही है सर, बहुत खूबसूरत गज़ल ।

Vivek Jain said...

खूबसूरत गज़ल
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

daanish said...

मुफलिसी के आंसुओं की सींच से
हम सियासी फसल उपजाने लगे हैं ....


kyaa khoob khayaalaat ka izhaar kiyaa hai janaab ...
ashaar apni misaal aap haiN .

ishq sultanpuri said...

aap sabhee ka lakh-lakh shukriya

Asha Joglekar said...

आपकी नई रचना के इंतज़ार में ।

ishq sultanpuri said...

shukriya naee rachana aa gayee hai