Friday, January 30, 2009

गम-ए -आशिकी




फिर टूटा दिल किसी का कोई हो गया दिवाना ।

लो याद आ गया फिर गुजरा हुआ जमाना ॥



कई कत्ल हो चुके हैं गम-ए -आशिकी के पीछे।

देखो सितम सनम का मुसका के चले जाना॥



मुझे बारहा पुकारा रोंका था अजीजों ने ।

हुश्न-ए -जवां की जुम्बिश तेरी और खिंचे आना ।।




दिल पर बरस रहे है तेरी बेरुखी के पत्थर ।

टुकडों मे हो गया है शीशे का आशियाना ॥



यहाँ "इश्क" की गली मे कई नफरतों के घर हैं।

दस बार परखियेगा जब लेना हो ठिकाना ॥

1 comment:

Vinay said...

बहुत दूर -दूर रहते हैं, इतने दिनों बाद आपका लिखा पढ़ा तो जी ख़ुश हो गया!