
फिर टूटा दिल किसी का कोई हो गया दिवाना ।
लो याद आ गया फिर गुजरा हुआ जमाना ॥कई कत्ल हो चुके हैं गम-ए -आशिकी के पीछे।
देखो सितम सनम का मुसका के चले जाना॥
मुझे बारहा पुकारा रोंका था अजीजों ने ।
हुश्न-ए -जवां की जुम्बिश तेरी और खिंचे आना ।।
दिल पर बरस रहे है तेरी बेरुखी के पत्थर ।
टुकडों मे हो गया है शीशे का आशियाना ॥
यहाँ "इश्क" की गली मे कई नफरतों के घर हैं।
दस बार परखियेगा जब लेना हो ठिकाना ॥
1 comment:
बहुत दूर -दूर रहते हैं, इतने दिनों बाद आपका लिखा पढ़ा तो जी ख़ुश हो गया!
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