
एतबार ने किसी के मझधार मे डुबाया।
किसको कहूं मैं अपना यहाँ कौन है पराया।।
दरिया थमा हुआ था माकूल थी हवा भी।
किसपे लगाऊँ तोहमत मांझी ने सितम ढाया।।
बनते हैं मरासिम भी बादल की शक्ल जैसे।
ये चहरे बदलते हैं तूफाँ-ए-गम जो आया॥
इक दौर था जो महफ़िल हमसे ही जगामग थी।
इक दौर आज है जब ख़ुद आशियाँ जलाया॥
रोता हूँ तड़पता हूँ जिसकी वफ़ा की खातिर।
उसने सुना है मेरा हर एक निशाँ मिटाया॥
मौका परस्त दुनिया लोगों की साजिशों ने ।
तालीम को बिगाडा ईमाँ को डगमगाया॥
अब ' इश्क ' क्या करुँ मैं किसको खुदा बनाऊँ।
वही धोखेबाज निकला जिसको भी आजमाया॥