
हम भी अब दिल को समझाने लगे हैं।
खास अपने जब से बेगाने लगे हैं॥
टूट जाते हैं हमेशा ये खयाली एतबार।
जब दिलों पर जख्म अनजाने लगे हैं।।
लूटते हैं मुल्क को अब रहनुमा।
सिक्कों से ईमान तुलवाने लगे हैं॥
मुफलिसी के आंसुओं की सींच से।
हम सियासी फसल उपजाने लगे हैं॥
झीना - झीना है जम्हूरी पैराहन।
बस जरा करवट से फट जाने लगे हैं॥
''इश्क'' कैसे ठीक हों हालात ये।
फैसले कातिल से लिखवाने लगे हैं॥
......................."इश्क" सुल्तानपुरी...........