
बहुत मोहताज़ हूँ लेकिन दिल-ऐ-जागीर रखता हूँ।
छुपाकर अपने सीने मे तेरी तस्वीर रखता हूँ॥
बदलते हैं यहाँ हालात मौसम के इशारे पर।
मैं वो माली हूँ गुलशन मे तेरी तासीर रखता हूँ॥
तुम्हारी बज्म से हटकर मैं चुप हूँ कुछ नहीं कहता।
जहाँ चर्चा तुम्हारा हो वहीं तक़रीर रखता हूँ॥
मोहब्बत से मेरी आजाद होना गैर-मुमकिन है।
चहर दीवारी है ऊंची बंधी जंजीर रखता हूँ॥
फ़िदा हैं ''इश्क'' यूँ अब शायरी का शौक करते हैं।
जुबाँ पर लब्ज-ऐ-ग़ालिब है जिगर मे मीर रखता हूँ॥