
कोई भी न रहा सहारा ।
मनुज फिरे बन कर बेचारा ।
शक्ति नहीं आशक्ति नहीं ,
भक्ति नहीं और मुक्ति नहीं ।
कुंठा प्रकटित प्रति मस्तक पर,
चिंता बढ़ती हर दस्तक पर ॥
एक ही प्रश्न निरंतर है ।
क्या मेरा है क्या है तुम्हारा ?
....शेष आगामी संग्रह मे ....
रात भर एहसास से एहसास टकराते रहे।
आए सनम आगोश मे शिकवे-गिले जाते रहे॥
दूरियां अब दूरियों से पूछती हैं दूरियां।
होंठ न कह पाए कुछ सांसों से थर्राते रहे॥
हाथ आए हाथ मे सब मन्नतें पूरी हुईं।
मेरे उनके दरमियाँ लम्हे भी मुसकाते रहे॥
करवटें-दर-करवटें थकता नहीं हममे कोई।
जिंदगी के पैराहन पर रंग बरसते रहे॥
''इश्क'' है इतनी ही ख्वाहिश आशनाई मे।
ख्वाब कुछ इस तरह के ही रात मे आते रहें॥