आपकी शोख निगाहों का असर देख लिया।
कैसे करतें हैं घायल ये जिगर देख लिया॥
देखने को नही बाकी है तमाशा कोई।
आपका चैन चुराने का हुनर देख लिया॥
हम तो एखलाक-ओ-इमान लिए फिरते थे।
दौलतों के लिए दीवाना शहर देख लिया॥
अब कहीं और जा के अपने कसीदे पढिये।
मेरी बस्ती ने सियासत का कहर देख लिया॥
'इश्क कैसे बचाएं अपना बसेरा इनसे।
नफरतों ने कहाँ से मेरा भी घर देख लिया॥
5 comments:
bhut khub. likhate rhe.
आपका ब्लाग देखा पहली गजल अच्छी लगी अन्य कविताओं में भ्ी आपकी सादगी दिखी
aapko shukriya
बहुत खूबसूरत लिखते हैं । जारी रहिये ।
behtarin
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