आशिकी संगदिली नहीं होती।
बेबाकियाँ भली नहीं होती॥
अगर इनकार का पता होता।
जुबाँ मेरी खुली नहीं होती॥
इंतजार-ऐ-शमा जली नहीं होती।
हवा ऐसी चली नहीं होती॥
टूटता जो न एतबार कोई।
बस्तियां फ़िर जली नहीं होती॥
''इश्क'' का नाम मिट गया होता।
गर्दिशें गर मिली नहीं होती॥
2 comments:
अगर इनकार का पता होता।
जुबान मेरी खुली नहीं होती॥
इंतजार-ऐ-शमा जली नहीं होती।
हवा ऐसी चली नहीं होती॥
behad sundar
saahab ye ghazal sabse behtar lagi mujhe...
chhoti behar me bhi bahut umda tareeke se aapne khayalon pe pakad rakhi hai..
bahut khub
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