कितने टुकडे दिलों के हुए हैं इधर,
लुट गया हर कोई प्यार के खेल में,
हमपे मुसकाईये अजनबी देखकर।
हर कोई मेहरबां हर कोई रहगुजर,
गर्दिशों मे किसे है हमारी ख़बर।
'इश्क' पर तो सितम होते हर दौर में,
हुस्न की चाह में फ़िर रहा दर-ब-दर।
आओ जख्मों का कुछ हिसाब करें । दर्द को फ़िर से लाजवाब करें॥
3 comments:
'इश्क' पर तो सितम होते हर दौर में,
हुस्न की चाह में फ़िर रहा दर-ब-दर।
wah bahut khuub !!!!
[ek request hai ki word veriffication hata kar comments moderate kar lijeeye---ye comments likhne walon ko discourage karta hai--thanks]
vah bhiya bahut khoob,is khoj mein hum bhi apke saath hain.
waah kya kahe alfaz nahi,bahut sundar
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