रात देर तक जाग के देखा,
कोई सितारा बुझा नहीं था।
मैं ही अकेला था महफ़िल में,
फ़िर भी मुझ पर फ़िदा नहीं था।
चाँद भी मुझ सा फिक्रमंद था,
मेरे गम से जुदा नहीं था।
कैसे मजा तुम दर्द का पाते ,
इश्क किसी से हुआ नहीं था.
आओ जख्मों का कुछ हिसाब करें । दर्द को फ़िर से लाजवाब करें॥
1 comment:
bahut khub
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