एक ही प्रश्न
कोई भी न रहा सहारा ।
मनुज फिरे बन कर बेचारा ।
शक्ति नहीं आशक्ति नहीं ,
भक्ति नहीं और मुक्ति नहीं ।
कुंठा प्रकटित प्रति मस्तक पर,
चिंता बढ़ती हर दस्तक पर ॥
एक ही प्रश्न निरंतर है ।
क्या मेरा है क्या है तुम्हारा ?
....शेष आगामी संग्रह मे ....
No comments:
Post a Comment