दर्द उठता है आह उठती है ।
दिल पिघलता है चाह उठती है ॥
जब मोहब्बत का असर होता है।
जहाँ से रस्मो-राह उठती है ॥
देर तक जागे जो सुबह उनकी
रफ्ता-रफ्ता निगाह उठती है ॥
यहाँ बदनाम खुदा होता है ।
गरीबी जब कराह उठती है ॥
''इश्क'' का दर्द जिस गजल मे हो।
उसपे महफ़िल से वाह उठती है ॥
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4 comments:
waah bahut badhiya khas kar aakhari do sher lajawab
''इश्क'' का दर्द जिस गजल मे हो।
उसपे महफ़िल से वाह उठती है ॥
bahut khubsurat sher ha ...likhte rahiye...
जब मोहब्बत का असर होता है।
जहाँ से रस्मो-राह उठती है ॥
बहुत ख़ूब!
अरे भाई कहां थे अरसे से , बहुत अच्छी लगी आपकी यह गजल
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